फ़िल्म इंडस्ट्री में ख़ुद को "प्रोफ़ेशनलिज़्म" के इकलौते जन्मदाता माननेवाले लोगों की कमी नही है॥ इन लोगो को अपने किसी खास रवैये की वजह से यह ग़लतफ़हमी होती है या यूँही "ज़रा हटके" जुमले का इस्तेमाल करने को लालायित ये लोग अपनेआप ही अपने माथे पर "प्रोफ़ेशनलिज़्म" की पट्टी बाँध लेते हैं, ये बात आजतक मुझे समझ नही आई॥
बातों के व्यूह जाल में न फंसते हुए असली घटना की चर्चा करते हैं॥ बात तबकी है जब मैं बीबीसी केलिए एक कार्यक्रम बना रही थी॥ कार्यक्रम का नाम था "बॉलीवुड इंक", यह प्रोग्राम हिन्दी फ़िल्म इंडस्ट्री के इतिहास, वर्तमान और उसके व्यावसायिक पहलुओं पर रोशनी डालता था। इंडस्ट्री के अलग-अलग डिपार्ट्मेंट्स जैसे फ़िल्म निर्माण, निर्देशन, फ़ाइनान्स, सैट डिसाइनिंग, कास्टयुम डिसाइनिंग आदि में आए बदलाव पर भी हम इस कार्यक्रम में बात करते थे॥ फ़िल्म इंडस्ट्री से जुडा कोई कार्यक्रम हो तो ज़ाहिर सी बात है की फ़िल्म निर्माता, निर्देशक और कलाकारों से मुलाकात और उनके दृष्टिकोण से दर्शकों को रु-ब-रु करवाना कार्यक्रम का एक अहम् हिस्सा होता है॥
आगे बढ़ने से पहले एक बात ख़ास तौर पर में कहना चाहूंगी कि "बॉलीवुड" इस नाम का इस्तेमाल करने से इंडस्ट्री में कई लोगों को परहेज़ है॥ और मैं ख़ुद उसी वर्ग विशेष का ही हिस्सा हूँ॥ जिन्हें लगता है कि हर चीज़ मे अंग्रेजों की नक़ल या उनकी सोच कि गुलामी अच्छी नही॥ "हॉलीवुड की तर्ज़ पर" अपनी इंडस्ट्री का नाम "बॉलीवुड" रखना हम लोगों को शर्मनाक लगता है॥ इस मामले में अमिताभ बच्चन सबसे आगे हैं, बच्चन साहब कभी भी "बॉलीवुड" शब्द का इस्तेमाल नही करते और ना ही ऐसी किसी किताब, कार्यक्रम या प्रोजेक्ट में इंटरव्यू देते हैं जहाँ हिन्दी फ़िल्म इंडस्ट्री को बॉलीवुड कह कर संबोधित किया जाए॥
खैर वो बच्चन साहब हैं कुछ भी करने या न करने का निर्णय ले सकते हैं॥ मगर हम लोग कई दफा न चाहते हुए भी हालत या "प्रोफ़ेशनलिज़्म" की चक्की में पिस जाते हैं॥ जिसका सबसे जीवंत उदाहरण है की मैं ख़ुद "बॉलीवुड" नाम के इस्तेमाल से परहेज़ करती हूँ मगर मैं इस कार्यक्रम का एक अहम् हिस्सा थी॥
इस कार्यक्रम के दौरान कई नामी-गिरामी फिल्मी हस्तियों से मिलने और उनके विचार जानने का मौका मुझे मिला॥ फ़िल्म निर्माण के विभिन्न पहलुओं के बारे में कई बारीकियाँ भी जानने और समझने को मिली॥
मगर इस सब के दौरान एक ऐसी घटना घटित हुयी जिसने इस चमकते आसमान के पीछे के अंधेरे से एक बार फ़िर मेरा परिचय करवाया॥ फ़िल्म निर्देशन के क्षेत्र में आए बदलाव के बारे में किसी सफल और मशहूर निर्देशक का इंटरव्यू मुझे करना था॥ गोवारिकर साहब को मैंने फ़ोन पर अपने कार्यक्रम के बारे में बताया और उनसे इंटरव्यू का टाइम निर्धारित किया॥
समय पर हम लोग आशुतोष के दफ्तर पहुँच गए और कैमरा टीम ने अपना काम शुरू कर दिया॥ समय का सदुपयोग करने के लिहाज़ से मैं और मेरे कार्यक्रम की निर्देशिका हम दोनों आशुतोष को अपने कार्यक्रम के बारे में विस्तार से बताने में व्यस्त हो गए॥
सब कुछ ठीक ठाक था॥ और कैमरा सैट होते ही आशुतोष ने माइक लगाया और अपनी जगह पर विराजमान हुए॥ कि अचानक उन्हें ख्याल आया की इस कार्यक्रम का नाम तो "बॉलीवुड इंक" है॥ और वो कैसे किसी ऐसे कार्यक्रम का हिस्सा बन सकते हैं जिसमें हिन्दी फ़िल्म इंडस्ट्री को "बॉलीवुड" कह कर संबोधित किया जा रहा हो??
बस फ़िर क्या था आशुतोष ने हमसे कुछ पल की इजाज़त मांगी और उसके बाद हमें अपने निर्णय से अवगत करवाया की वो इस कार्यक्रम में हिस्सा नही लेंगे॥ या तो कार्यक्रम का नाम बदला जाए और या उन्हें इसमें बोलने के लिए मजबूर न किया जाए॥ ऐसे में आधा दर्जन लोगों की टीम कैमरा, लाइट और बाकी साजो-सम्मान के साथ वहां आशुतोष के दफ्तर में खड़ी ख़ुद को आला दर्जे का बेवकूफ महसूस कर रही थी॥ इस परिस्थिति का सामना करना मेरे लिए सबसे ज़्यादा कठिन था क्योंकि मैंने ही आशुतोष से बात करके उन्हें अपने कार्यक्रम और उसके विषय के बारे में अवगत करवाया था॥ काफी कोशिश की गई आशुतोष को यह समझाने की कि इस यूँ आखिरी मौके पे उनका इनकार हमारे लिये कई मुसीबतें खड़ी कर देगा॥ मगर फ़िल्म इंडस्ट्री में "प्रोफ़ेशनलिज़्म" का ढोल पीटने वालों में अग्रणीय आसुतोष अपने इरादों से टस से मस नही हुए॥ मगर जैसा कि हमारी इंडस्ट्री में एक प्रसिद्द कहावत है कि "द शो मस्ट गो ऑन".. और वो शो भी बना बस फर्क सिर्फ़ इतना था कि कुछ बड़ी मुश्किलों का सामना करने के बाद उस कार्यक्रम में आशुतोष कि जगह परिणीता फ़िल्म के निर्देशक प्रदीप सरकार ने फ़िल्म निर्माण के विभिन्न पहलुओं पर रोशनी डाली। और दर्शकों को मनोरंजक तरीके से कुछ ज्ञानवर्धक बातें बताने की हमारी कोशिश पुरी तरह कामयाब रही॥
बातों के व्यूह जाल में न फंसते हुए असली घटना की चर्चा करते हैं॥ बात तबकी है जब मैं बीबीसी केलिए एक कार्यक्रम बना रही थी॥ कार्यक्रम का नाम था "बॉलीवुड इंक", यह प्रोग्राम हिन्दी फ़िल्म इंडस्ट्री के इतिहास, वर्तमान और उसके व्यावसायिक पहलुओं पर रोशनी डालता था। इंडस्ट्री के अलग-अलग डिपार्ट्मेंट्स जैसे फ़िल्म निर्माण, निर्देशन, फ़ाइनान्स, सैट डिसाइनिंग, कास्टयुम डिसाइनिंग आदि में आए बदलाव पर भी हम इस कार्यक्रम में बात करते थे॥ फ़िल्म इंडस्ट्री से जुडा कोई कार्यक्रम हो तो ज़ाहिर सी बात है की फ़िल्म निर्माता, निर्देशक और कलाकारों से मुलाकात और उनके दृष्टिकोण से दर्शकों को रु-ब-रु करवाना कार्यक्रम का एक अहम् हिस्सा होता है॥
आगे बढ़ने से पहले एक बात ख़ास तौर पर में कहना चाहूंगी कि "बॉलीवुड" इस नाम का इस्तेमाल करने से इंडस्ट्री में कई लोगों को परहेज़ है॥ और मैं ख़ुद उसी वर्ग विशेष का ही हिस्सा हूँ॥ जिन्हें लगता है कि हर चीज़ मे अंग्रेजों की नक़ल या उनकी सोच कि गुलामी अच्छी नही॥ "हॉलीवुड की तर्ज़ पर" अपनी इंडस्ट्री का नाम "बॉलीवुड" रखना हम लोगों को शर्मनाक लगता है॥ इस मामले में अमिताभ बच्चन सबसे आगे हैं, बच्चन साहब कभी भी "बॉलीवुड" शब्द का इस्तेमाल नही करते और ना ही ऐसी किसी किताब, कार्यक्रम या प्रोजेक्ट में इंटरव्यू देते हैं जहाँ हिन्दी फ़िल्म इंडस्ट्री को बॉलीवुड कह कर संबोधित किया जाए॥
खैर वो बच्चन साहब हैं कुछ भी करने या न करने का निर्णय ले सकते हैं॥ मगर हम लोग कई दफा न चाहते हुए भी हालत या "प्रोफ़ेशनलिज़्म" की चक्की में पिस जाते हैं॥ जिसका सबसे जीवंत उदाहरण है की मैं ख़ुद "बॉलीवुड" नाम के इस्तेमाल से परहेज़ करती हूँ मगर मैं इस कार्यक्रम का एक अहम् हिस्सा थी॥
इस कार्यक्रम के दौरान कई नामी-गिरामी फिल्मी हस्तियों से मिलने और उनके विचार जानने का मौका मुझे मिला॥ फ़िल्म निर्माण के विभिन्न पहलुओं के बारे में कई बारीकियाँ भी जानने और समझने को मिली॥
मगर इस सब के दौरान एक ऐसी घटना घटित हुयी जिसने इस चमकते आसमान के पीछे के अंधेरे से एक बार फ़िर मेरा परिचय करवाया॥ फ़िल्म निर्देशन के क्षेत्र में आए बदलाव के बारे में किसी सफल और मशहूर निर्देशक का इंटरव्यू मुझे करना था॥ गोवारिकर साहब को मैंने फ़ोन पर अपने कार्यक्रम के बारे में बताया और उनसे इंटरव्यू का टाइम निर्धारित किया॥
समय पर हम लोग आशुतोष के दफ्तर पहुँच गए और कैमरा टीम ने अपना काम शुरू कर दिया॥ समय का सदुपयोग करने के लिहाज़ से मैं और मेरे कार्यक्रम की निर्देशिका हम दोनों आशुतोष को अपने कार्यक्रम के बारे में विस्तार से बताने में व्यस्त हो गए॥
सब कुछ ठीक ठाक था॥ और कैमरा सैट होते ही आशुतोष ने माइक लगाया और अपनी जगह पर विराजमान हुए॥ कि अचानक उन्हें ख्याल आया की इस कार्यक्रम का नाम तो "बॉलीवुड इंक" है॥ और वो कैसे किसी ऐसे कार्यक्रम का हिस्सा बन सकते हैं जिसमें हिन्दी फ़िल्म इंडस्ट्री को "बॉलीवुड" कह कर संबोधित किया जा रहा हो??
बस फ़िर क्या था आशुतोष ने हमसे कुछ पल की इजाज़त मांगी और उसके बाद हमें अपने निर्णय से अवगत करवाया की वो इस कार्यक्रम में हिस्सा नही लेंगे॥ या तो कार्यक्रम का नाम बदला जाए और या उन्हें इसमें बोलने के लिए मजबूर न किया जाए॥ ऐसे में आधा दर्जन लोगों की टीम कैमरा, लाइट और बाकी साजो-सम्मान के साथ वहां आशुतोष के दफ्तर में खड़ी ख़ुद को आला दर्जे का बेवकूफ महसूस कर रही थी॥ इस परिस्थिति का सामना करना मेरे लिए सबसे ज़्यादा कठिन था क्योंकि मैंने ही आशुतोष से बात करके उन्हें अपने कार्यक्रम और उसके विषय के बारे में अवगत करवाया था॥ काफी कोशिश की गई आशुतोष को यह समझाने की कि इस यूँ आखिरी मौके पे उनका इनकार हमारे लिये कई मुसीबतें खड़ी कर देगा॥ मगर फ़िल्म इंडस्ट्री में "प्रोफ़ेशनलिज़्म" का ढोल पीटने वालों में अग्रणीय आसुतोष अपने इरादों से टस से मस नही हुए॥ मगर जैसा कि हमारी इंडस्ट्री में एक प्रसिद्द कहावत है कि "द शो मस्ट गो ऑन".. और वो शो भी बना बस फर्क सिर्फ़ इतना था कि कुछ बड़ी मुश्किलों का सामना करने के बाद उस कार्यक्रम में आशुतोष कि जगह परिणीता फ़िल्म के निर्देशक प्रदीप सरकार ने फ़िल्म निर्माण के विभिन्न पहलुओं पर रोशनी डाली। और दर्शकों को मनोरंजक तरीके से कुछ ज्ञानवर्धक बातें बताने की हमारी कोशिश पुरी तरह कामयाब रही॥
yeh saare siddhant aur usool, yeh sab convenience ke hisaab se banaye aur tode jaate hai. hum sab iska hissa hai, kuch log accept kar lete hai aur kuch Ashutosh ki tarah dogale hota hain.
जवाब देंहटाएंIs he really that arrogant?????????
जवाब देंहटाएंक्या कहें ? 'कोफ्त' शब्द शायद ऐसे ही वाकयों के लिये बना है।
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