शुक्रवार, 2 अप्रैल 2010

आई पी एल से टक्कर तौबा तौबा..

यूँ तो हर साल फरवरी और मार्च महीना फिल्म निर्माताओं की परेशानी का सबब होते हैं। क्योंकि इन महीनो में बच्चो को परीक्षाओं के चलते बोक्स आफिस पर नई फिल्मों का आगमन शुभ नहीं माना जाता। इस समय फिल्म निर्माताओं के साथ साथ सिनेमा घरों की खिड़कियाँ भी दर्शकों के आने कि बाट जोहती रहती हैं। मगर इस बार फिल्मों के लिए ये मनहूस मौसम और भी लम्बा हो गया है क्योंकि आईपीएल मैचों के चलते अप्रैल महीने में भी भी सिनेमाघरों की गोदभराई में सिर्फ कम बजट की फिल्में या डब्ड फिल्में ही पड़ेंगी। इन छोटे बजट की फिल्मों के निर्माता अपनी फिल्में इस वक़्त इसलिए रिलीज़ कर रहे हैं क्योंकि इन दिनों किसी बड़ी फिल्म से उनकी फिल्मों की टक्कर नहीं होगी और साथ ही उन्हें कम दाम में बड़े सिनेमाघर भी मिल रहे हैं। लेकिन सिनेमा हाल में फिल्म लगने से क्या होगा अगर उनकी मुह दिखाई करने वाले दर्शक ही टिकेट खिड़की से नदारद रहे तो।हाल ही में प्रदर्शित लव, सेक्स और धोखा को छोड़ कर बाकी रिलीज़ हुई सभी फिल्मों का हश्र डरावना रहा। फिल्म ‘हम तुम और गोस्ट" जिसकी कहानी अरशद वारसी ने खुद लिखी थी उसे देखने गोस्ट दर्शकों की बिरादरी गयी हो तो कह नहीं सकते मगर हम-तुम यानि आम पब्लिक ने अरशद और दिया केलिए सिनेमाघरों की तरफ जाने की ज़हमत उठाने की बजाये घर बैठ के आईपीएल मैच देखना ज़यादा पसंद किया। यही हाल फिल्म ‘प्रेम का गेम’, ‘माय फ्रेंड गणेशा ३’, और कुछ अन्य डब्ड फिल्मों का भी हुआ। आईपीएल मैचों के चलते ये फ़िल्में अपनी लागत तक न निकल सकी।काफी अरसे बाद श्याम बेनेगल ने अपने चाहनेवालों को एक नई फिल्म ‘वेल डन अब्बा’ का तोहफा दिया। उनकी इस फिल्म से सभी को उम्मीद थी कि दर्शक और फिल्म फैनेंसर इस फिल्म कि रिलीस के बाद वैल डन श्याम बेनेगल ज़रूर कहेंगे लेकिन इस फिल्म कि झोली में सिर्फ फिल्म समीक्षकों की तारीफ ही आई। क्योंकि यह फिल्म भी दर्शकों की भीड़ देखने को तरस रही है।विक्रम भट्ट की ‘शापित’ ने दर्शकों का मनोरंजन कम और खाली सिनेमाघर के सन्नाटे कि वजह से उन्हें डराया ज्यादा। इस फिल्म के फ्लाप होने का विक्रम को तो जो नुक्सान हुआ उससे वो किसी और फिल्म में पूरा कर सकते हैं लेकिन आदित्य नारायण जिन्होंने अभिनय की दुनिया में इस फिल्म के जरिये ही शुरुआत की थी उनकेलिए ज़रूर हमारे दिल में हमदर्दी है । फिल्म ‘लाहौर’ ने भी किसी तरह एक सप्ताह ही टिकेट खिड़की पर पानी माँगा । जबकि ‘इडियट बॉक्स’ को तो कई सिनेमाघरों से दो-तीन शो के बाद ही उतार दिया। वजह? घर में लगे इडिअट बाक्स पर आ रहे आई पी एल मैच की बेड़ियाँ।फिल्मों में शत्रुघन सिन्हा के सुपुत्र लव सिन्हा की डेब्यू फिल्म "सदियाँ " और एक अदद हिट फिल्म को तरसते बिवेक ओबेराय की ‘प्रिंस’ के आलावा "तुम मिलो तो सही", "द ग्रेट इंडियन बटरफ्लाय" और अपर्णा सेन की ‘द जापानीज़ वाइफ’ भी आईपीएल की परवाह किये बगैर सिनेमा घरों में तक दर्शकों को खिंच लाने का सपना लिए अप्रैल में ही रिलीज़ होने जा रही हैं।फिल्म ‘सदियाँ’ के प्रोमो में लव सिन्हा से ज़यादा हेमा और रेखा कि जोड़ी को प्रमोट किया जा रहा है। अधिकतर पकी उम्र के लोग ही रेख-हेमा कि जोड़ी को देखने में दिलचस्पी दिखायेंगे। और ऐसे लोगों को मल्टीप्लेक्स टिकटों के रेट सुनके ही पसीना निकलने लगता है। ‘प्रिंस’ एक थ्रिलर मूवी है लेकिन आईपीएल मैचों के थ्रिल से अकेले विवेक ओबेरॉय टक्कर ज़रा छोटा मुह बड़ी बात लगती है। इस फिल्म से अगर विवेक के करियर में उछाल नहीं आया तो हो सकता है कि आगे कोई उन्हें सोलो हीरो लेकर फिल्म बनाने की हिमाकत न करे। अपर्णा सेन की ‘द जापानीज़ वाइफ’ ‍ में राहुल बोस और राइमा सेन लीड रोल में हैं। कला फिल्म के दर्शक जिन्होंने श्याम बेनेगल की उमीदों पर पानी फेर दिया वो हो सकता है कि अपर्णा सेन को खुश कर दें । फिल्म ‘जाने कहाँ से आई है’ में रितेश और जैकलीन फर्नांडिस की जोड़ी है ये फिल्म शायद शायद कुछ हद तक दर्शकों को सिनेमाघरों तक लेन में कामयाब हो जाये।और अब बात करते हैं राम गोपाल वर्मा के दुस्साहस की। रामगोपाल वर्मा की पहली ‘फूँक’ कि मार तो ही दर्शक भूले नहीं हैं ऐसे में आईपीएल के मौसम में रामू की दूसरी फूंक दर्शकों को कहीं पहले से भी ज्यादा दूर न कर दे। फिल्म ‘मुस्कुरा के देख जरा’, ‘मूसा’ और ‘अपार्टमेंट’ फिल्मों से आप कितनी उम्मीद लगा सकते हैं ये बताने की शायद ज़रूरत नहीं।फिल्मों के इस बाज़ार में शिक्षा प्रणाली कि खामियों को उजागर करती फिल्म ‘पाठशाला’ में शाहिद कपूर, आयशा टाकिया और नाना पाटेकर के साथ करीब आधा दर्ज़न नन्हे स्टार कलाकारों की फ़ौज शायद बच्चों को लुभा जाये और तब टिकेट खिड़की कि सुनी गोद एक बार फिर भर जाये।दरअसल आईपीएल एक महबूबा की तरह है जोकि साल में एक ही बार ही "डेट" पर आती है जबकि हर शुक्रवार रिलीज़ होने वाली फिल्में एक पत्नी कि तरह हैं। जोकि अगर सिनेमाघर में नहीं तो डी वी डी पर देख कर भी फिल्म लुत्फ़ उठाया जा सकता है। इसलिए आई पी एल से टक्कर तौबा तौबा।