सोमवार, 29 मार्च 2010

फ़िल्मी सितारे : उनकी आस्था और विश्वास..

कलियुग में भगवान होने कि परिभाषा बदल गयी है। राजा होने के मायने बदल चुके हैं। आज भगवान वो है जिसके भाषण से राशन मिले न मिले लेकिन सोसाइटी में सत्संगी होने कि इमेज से ही लोग खुद को धन्य समझते हैं। राजा होने का अर्थ सही मायने में सरकारी गाड़ियों का काफिला, जनता कि भलाई के नाम पर मिली रकम से स्विस बैंक का भला करने से ज़यादा कुछ नहीं।
फिर भी कलियुग में एक चीज़ नहीं बदली वो है उस मालिक या ईश्वर के दरबार में हाजिरी लगाने वालों कि आस्था और विश्वास । उसके दरबार में लगने वाली लाइनों को ज़रूर वी.आई.पी या साधारण जनता के आधार पर बाँट दिया जाता है लेकिन उसके सामने खड़े होने के बाद कोई सेलेब्रिटी हो या आम इंसान दोनों के हाथ एक ही अंदाज़ में जुड़ते हैं, दोनों की ही प्रार्थना तब तक स्वीकार नहीं होती जबतक उसकी आत्मा की आवाज़ उसमें न शामिल हो॥
मायानगरी में रहने वाले सितारों के नाम से चाहे जितने मंदिर और चालीसों की रचना कर दी जाये लेकिन फ़िल्मी फलक पर चमकने वाले ये सितारे भी उस परमेश्वर के दरबार में एक साधारण इंसान की तरह ही अपने और अपनों के दुःख को सुख में बदलने की गुज़ारिश करते हैं। और ये गुज़ारिश करने केलिए इस सितारों को अपना वी आई.पी.स्टेटस भूल कर भगवान की शरण जाना पड़ता है।
समय-समय पर हुई मुलाकातों के दौरान मुझे ये पता चला की इस दुनिया के रंगीन सितारे अपनी इस चकाचौंध कर देने वाली रोशनी, प्रसिद्धि और दौलत का श्रेय उस दुनिया की किस शक्ति देते हैं??
दुर्गा माँ के परम भक्तों में अक्षय काजोल, सुष्मिता, बिपाशा नवरात्रों में देवी के दरबार में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाना नहीं भूलते। यहाँ तक कि खिलाडी अक्षय तो ज़्यादातर नमस्ते, हाय, हेलो की जगह "जय माता दी" कहना ही पसंद करते हैं।
सुष्मिता सेन जब भी कोलकाता जाती हैं तो दखिनेश्वर और कालीघाट के मंदिर जाना नहीं भूलती । अफवाहों के करीब और मीडिया से दूर रहने वाली रानी मुखर्जी ईश्वर को अपने सबसे करीब मानती हैं और जब भी मौका मिले ये मुंबई के सिद्धिविनायक मंदिर और गोरेगाँव स्थित काली मंदिर जाती हैं।
विवेक ओबरॉय और विद्या बालन की सफलता, अभिनय में तो कोई समानता नहीं लेकिन इनकी धार्मिक आस्था और विश्वास ज़रूर एक सामान हैं क्योकि दोनों को ही शिर्डी के साँईंबाबा में अटूट श्रद्धा है। तिरुपति बाला जी और श्री सिद्धिविनायक बच्चन परिवार की आस्था का केंद्र हैं। ड्रीम गर्ल हेमा मालिनी और उनकी दोनों बेटियां की आस्था श्री कृष्ण चरणों में समर्पित है। संजय दत्त ने चाहे पत्नी कितनी भी बदली हों लेकिन माँ भगवती के प्रति उनकी आस्था औरश्रद्धा कभी नहीं बदली।
तुषार कपूर अपने भक्तिभाव को जग जाहिर करने में ज्यादा विश्वास नहीं करते बस घर में अगर हवन-पूजा हो तो उसमें हाजिरी लगा के वो ईश्वर के दरबार में अपनी इच्छाओं की लिस्ट पेश कर देते हैं। लेकिन ऐसा नहीं है के उन्हें भगवन में विश्वास नहीं बस वो अपने और भगवन के इस रिश्ते को अपनी बहन एकता की तरह जग जाहिर नहीं करते।
तो कुल मिला के नतीजा ये है के इस दुनिया के सितारे भी हमारी ही तरह सूख-दुःख की आंधियों से परेशां होते हैं। उन्हें भी एक आम इंसान की तरह मुश्किल की घडी में एक अदृश्य शक्ति की ज़रूरत महसूस होती है। लोगों कि दीवानगी चाहे इन्हें फलक के सितारे से ज़यादा रोशन और ताकतवर समझके इनकी पूजा, आराधना करना शुरू कर दे लेकिन सच येही है कि आखिर हैं तो ये भी इंसान ही।

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