शुक्रवार, 17 अप्रैल 2009

संविधान बदलो नेता ख़ुद बदल जायेंगे..

आज़ादी, लोकतंत्र और मौलिक अधिकार मिलने के बाद क्या आपको नही लगता की हमलोगों ने अपनी सोचने समझने की ताकत खो दी है?? देश, समाज, यहाँ तक कि हमारी अपनी जिन्दगी कौन सी दिशा की और जा रही है, किसी के पास वक्त नहीं है ये सब सोचने का॥ त्रिशंकु सरकारें देखते-देखते शायद हमारी अपनी समझ भी त्रिशंकु हो चुकी है॥ दिमागी तौर पर हमलोग न तो ज़मीं पे हैं और न ही आसमान पर॥

क्रिकेट का खेल हो रहा है तो सारा देश उसी धुन में मगन घर-बहार-दफ्तर भुलाये क्रिकेट चालीसा का पाठ करता दिखाई देगा॥ दिवाली है तो हर जगह पटाखों की आवाज़ सुनाई देगी, होली है तो अबीर-गुलाल से सजी दुकाने एक आम नज़ारा होगा, सिक्खों के किसी गुरु का जन्मदिन आया तो पानी की छबीलें हर गली, सड़क पे दिखाई देंगी..... भारत के इस विशाल वृक्ष पे ऐसी ही न जाने कितनी रस्सियाँ लटक रही हैं जिन पर मौसम के अनुसार सारा देश लटकता दिखाई देता है॥


इस लोकतान्त्रिक देश में ऐसा ही एक त्यौहार और भी है.... "चुनाव का त्यौहार" जी हाँ मेरी तरह कई लोग ब्लॉग लिख कर इस त्यौहार को मना रहे हैं, टेलीविजन चैनेल कभी नेताओं को गालियाँ दे कर इस त्यौहार कि रसम निभाते दिखाई देते हैं तो कभी कभी उन्ही का हाथ थामें आधे-आधे घंटे के कार्यक्रम बना के अपने चैनेल का स्लाट भरते दिखाई देंगे॥ कुल मिला के बात ये है कि हम लोगों में और भेड़ बकरिओं में कुछ खास अन्तर नही रह गया है॥ एक ने जो दिशा पकड़ी पूरा देश उसी दिशा की और रुख करके निकल पड़ता है॥
ये चुनाव भी आए हैं हमेशा की तरह कुछ लोग वोट देंगें और कुछ नही देंगे॥ सरकार जैसे तैसे करके बन ही जायेगी और हम लोग अपनी ज़िन्दगी में कोई नया उत्सव मानाने में व्यस्त हो जायेंगे॥
पर क्या चुनाव के वक्त ही देश, नेता और भविष्य के बारे में चर्चा कर लेने से ही हमारी देश भक्ति साबित हो जाती है??
चुनावी बिगुल बजने के साथ ही देश के बारे में बातें करना एक लेटेस्ट फैशन है॥


लेकिन क्या कभी ठंडे दिमाग से हमने सोचा की जितनी शिद्दत से हम पुराने रीति-रिवाज़ बदलने की बात करते हैं उतना ही हम अपने संविधान के लिए लापरवाह हैं॥ कभी किसी ने नही सोचा की ६० साल से भी ज़्यादा उम्र के इस बूढे को अब रिटायर कर दिया जाए और उसकी जगह एक नए संविधान की नियुक्ति की जाए॥ लेकिन ये कैसे होगा ?? देश का युवा पब कल्चर पर लगने वाली रोक पर तो अपना रोष और जोश दिखाने को तैयार है लेकिन संविधान क्यों बदला जाए इसके बारे में सोचने की फुर्सत और समझ उन्हें नही है ॥ और देश के नेता जो "अर्थी" पर लेटने के बाद ही रिटायर हों तो हों ख़ुद कुर्सी का मोह त्यागना उनके बस की बात नहीं॥ वो नेता भला उस कानून को बदलने में दिलचस्पी क्यों दिखायेंगे जो कानून उनका उल्लू सीधा करने में उनकी पुरजोर मदद करता है॥ कभी कोई नही सोचता की आज दफ्तर में चंद फाइलें चलाने वाले एक चपरासी की नौकरी के लिए भी कम से कम ग्रेजुएट होना अनिवार्य है मगर देश को चलाने वाले "नेता" अगर अनपढ़ भी है तो हमें कोई मलाल नही॥ एक ५८ साल का व्यक्ति अगर पुरी तरह तंदरुस्त है तो भी उससे नौकरी से बर्खास्त कर दिया जाता है मगर हर साल दिल, घुटने, गुद्रे यानि सिर्फ़ दिमाग को छोड़ के बाकि सबका ओप्रशन करवाने वाले नेता के रिटायर होने की कोई उमर तय नही है?? आखिर क्यों ?? हम लोग सिर्फ़ मज़हब के भेदभाव पर ही बवाल क्यों मचाते हैं जबकि सबसे बड़ा भेदभाव हमारे संविधान में किया गया है॥ एक आम इंसान के लिए अलग कानून और नेताओं के लिए अलग कानून॥ आखिर क्यों ??
किसी भी नौकरी के लिए आवेदन भरते वक्त हमसे पूछा जाता है की आपका कोई पुलिस रिकॉर्ड तो नही॥ मगर एक नेता केलिए ऐसा कोई सवाल उसके करियर में बाधा नही डालता॥
धरम के नाम पर भारत को एक करने का दावा करने वाले नेता क्या इस भेद-भाव को मिटाने की कोशिश कभी करेंगे?? या हम लोग जो "सेक्युलर" समाज और सरकार चुनने की बात करते हैं, पुराने रीति-रिवाजों से छुटकारा पाने की वकालत करते हैं पर क्या हम कभी इस भेद-भाव को मिटाने के लिए कोई ठोस कदम उठाएंगे??

11 टिप्‍पणियां:

  1. many thanks Ashok Ji.. par samsaya ka smadhan dhundna hoga, apke pass mujhse zyada power hai, resources bhi.. pls do ur best.. aap logon tak apni awaz jaldi pahuncha sakte hain..

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  2. Verrrrrrrrrrrry Trrrrrrrrrrrrrru.
    we need change in our constitution and it s a wise solution instead fighting over who should be our next caretaker (Government) we should do something concrete to change our system, thought and yes the constitution.

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  3. reitusharmaजी

    वाहा बहुत ही सटीक तीर मारा है हमारे नेताओ पर। आप ने अच्छा लिखा इसलिऐ आप बधाई कि हकदार है

    आभार

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  4. सघन समस्या सागर सा है,
    संशय समुचित समाधान में।
    सकल सोच का सार है साथी,
    संशोधन हो संविधान में।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
    कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  5. आपसे सहमति है। लेकिन सवाल वही उठता है कि बिल्ली के गले में घंटी आखिर बांधेगा कौन?

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  6. you all are right but i know only one thing "We shall over come someday".. 200 saal lage angrezon se azadi paane mein, in corrupted netaon se azadi pane mein itna waqt nahi lagega.. I kno this for sure..

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  7. Some very good points made here... Keep writing...

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