शनिवार, 25 जनवरी 2014

वो कागज़ की कश्ती वो बारिश का पानी..

आजकल दो प्राइम चेनल्स पर बच्चो का डांस मुकाबला चल रहा है और तीसरा इस चूहा दौड़ में शामिल होने की तैयारी कर रहा है या यूँ कहें कि तीसरे की नक़ल करके पहले दो चैनल्स ने बच्चो को अपनी उँगलियों पर नचा के टीआरपी के खेल का मज़ा उठाने की तैयारी की है।
खैर पहले, दूसरे और तीसरे की गिनती से निकल कर मुद्दे की बात करते हैं। पता नहीं आप में से कितने लोगों ने इस बात को नोटिस किया है कि बच्चो के इन मुकाबलों में कई बच्चे अपनी उम्र से से कहीं ज़यादा मच्योर अदाएं और मेकअप कर के कैमरे के सामने आ रहे हैं। डांस कम्पीटीशन में जीतने केलिए क्या तिकडम लगानी है ये समझ इतने छोटे बच्चो में तो हो नहीं सकती। और जहाँ तक मैं जानती हूँ कोई भी चैनल या प्रोडक्शन हॉउस भी अभिवाकों पर ये दबाव नहीं डालता के वो अपने बच्चो को बच्चा कम और मल्लिका शेरावत ज्यादा बना के आडिशन केलिए लायें। साथ ही सोने पे सुहागा कहावत को चरित्रार्थ करते हुए उन्हें अश्लील अदाओं से जजेस को रिझाने की सीख भी दी जाती है। आखिर क्यों पैसे और पब्लिसिटी के भूखे कुछ लोग अपने बच्चो के मासूम बचपन की अपने अधूरे सपनो पर बलि चढा रहे हैं।
मात्र ६ साल की बच्ची “ज़रा ज़रा टाच मी, जरा ज़रा किस मी” गाने पर कटरीना को भी मात देने वाली अदाएं दिखाए तो उसके लिए किसे दोषी माना जाये?? बात सिर्फ अदाओं तक ही सिमित रहती तो बवाल मचाने की कोई ज़रूरत नहीं थी पर अदाओं के साथ साथ बच्चो के खासतौर पर लड़कियों के कपड़ों पर जिस बेरहमी से कैंची चली होती है उससे देख के मलायका, कटरीना और प्रियंका जैसी अभिनेत्रियाँ भी पानी भारती दिखाई देती हैं। और उस पे तुर्रा ये कि अगर इन बच्चो को रिजेक्ट किया जाये तो अभिवावक हाथ जोड़ने, आंसू बहाने से लेकर प्रोडक्शन वालों के हाथ पैर तोड़ने तक की धमकियों/कोशिशों तक से परहेज़ नहीं करते।
फिर भी अगर नियम, कानून और डांस की तकनिकी बरीकिओं में खामियां निकालकर ऐसे लोगों को रवाना कर भी दिया जाये तो ये लोग आसानी से हार नहीं मानते। या तो ये लोग अपने बच्चे का हाथ थामे एक के बाद दुसरे शो में ऑडिशन फार्म भरते दिखाई देंगे या फिर उसी कार्यक्रम के अगले सीज़न में हिस्सा लेने लिए ताबड़तोड़ तयारी में लग जाते हैं।
क्या इन लोगों के मन में एक बार भी ये नहीं आता कि ये मासूम बचपन एक बार अगर हाथ से फिसल जाये तो फिर कभी, किसी भी सूरत में लौट के नहीं आता। कितनी निर्ममता के ये लोग अपने बच्चों को बचपन कि देहलीज़ लांघने से पहले ही जवानी के गलियारे में ले आते हैं। उनकी टीन एज यानि किशोरावस्था उनसे छीन ली जाती है।
माँ बाप के अधूरे मगर अदृशय सपनो को कब बच्चे अपना सपना समझ बैठते हैं ये उन्हें भी पता नहीं चलता। ऐसे में ये बच्चे भी चाहते हैं कि वे जल्दी से बड़े हो जाएँ और वही सब करें जो वे बड़ों को करता देखते हैं। वैसे भी आजकल बच्चे उम्र और शारीरिक बनावट के लिहाज से भले ही किशोर लगते हों किन्तु मानसिक रूप से वह समय से पहले ही जबरदस्ती जवान बना दिये जाते हैं। ऐसे में जिन बच्चों की ज़िन्दगी में किशोरावस्था के लिए कोई वक़्त, एहसास और ज़रूरत तक बाकि नहीं रहती क्या वो बच्चे सचमुच के बड़े होने पर इस ग़ज़ल के मायने उसी शिद्दत के साथ समझ पाएंगे जिस शिद्दत और रूमानियत के साथ श्री जगजीत सिंह ने इसे गया और हम सब अपने बचपन की याद में अक्सर गुनगुनाने लगते हैं - -
ये दौलत भी ले लो ये शोहरत भी ले लो, भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी
मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन वो कागज़ कि कश्ती वो बारिश का पानी

2 टिप्‍पणियां:

  1. ye episode maine bhi dekha bechari bachchi use to kuch pata bhi nahi tha ki wo kya kar rahi hai aur sab uske pita ji ka nirdeshan tha....jaane aage kya hoga...

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  2. kadwa sach hai aaj ke generation ka. badiya post

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