बात तब की है जब मुझे मीडिया में कदम रखे कुछ महीने ही हुए थे॥ मौका मिला सुश्री मायावती से नई दिल्ली स्थित उनके सरकारी आवास पर उनसे रु-ब-रु होने का॥
खुदको दलित और गरीबों की मसीहा कहने वाली, ५० करोड़ से ज़्यादा की सम्पति की मालकिन, पेशे से एक अध्यापिका रह चुकी बहुजन समाजवादी पार्टी की अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश की वर्तमान मुख्यमंत्री मायावती ने निर्धारित समय से महज़ १५ मिनट की देरी से आगमन किया॥ मगर माया का परिवर्तित रूप देखकर मैं चौंक गई॥ क्योंकि अभी कल तक तो उनके शातिर दिमाग के पीछे एक घोड़े की पूंछ हुआ करती थी (माफ़ कीजिये अंग्रेज़ी में "पोनी टेल" कहते हैं तो उसका हिन्दी अनुवाद घोडे कि पूंछ ही मुझे समझ आया) ॥ मगर उस दिन मैदान साफ़ था और पूंछ नदारद थी॥ पूछने पर पता चला की मैडम अपनी बहनजी वाली छवि से छुटकारा पाना चाहती थीं॥
माया की ये मंशा जान कर मेरे मन में एक ही विचार आया कि "दिल बहलाने को ग़ालिब ख्याल अच्छा" है॥ हमारी बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ या ब्राह्मन समाज और ऋषि मन्नू से माया को अपना कोई पुराना बैर याद आया ये बात आजतक मेरी समझ में नहीआई ॥ मेरे हर सवाल के जवाब में सिर्फ़ और सिर्फ़ ब्राहमणों और मन्नू वादी विचारों के परखचे उडाये जा रहे थे॥ जीतनी सभ्य गालियाँ मेरे शब्कोष में उस समय थीं उन् सबकी सरहद के उस पार माया बहुत ऊँचे दर्जे की गालियों का उपयोग कर रही थी॥ और ये उस इंटरव्यू का हश्र था जोकि महिला सशक्तिकरण के विषय पर माया के विचार जानने के उद्देश्य से लिया जा रहा था॥ मतलब कि राजनीति या किसी विवाद में उलझाने का न तो मेरा विचार था और न ही मैंने ऐसा कोई सवाल माया से पूछा॥ पर माया कि जुबान कैंची की चाल और सांप के ज़हर दोनों को पछाड़ रही थी॥ मेरा सवाल चाहे माया की शिक्षा के बारे में हो या उसकी परवरिश, माता-पिता और नाते-रिश्तेदारों के बारे में मेरे हर सवाल कि चक्की में माया सिर्फ़ ब्राहमणों और मन्नू महाराज को ही पीसने पर आमादा थी॥ उस वक्त मुझे लगा की शायद मन्नू महाराज ने जलमगन हो रही पृथ्वी के जीवों को बचाने के लिए ईश्वर द्वारा भेजी गई नाव में माया को बैठाने से इनकार कर दिया होगा॥ वरना इतनी दुश्मनी तो १७ बार पृथ्वीराज चौहान से शिकस्त खाने वाले मोहम्मद गोरि ने भी पृथ्वी राज चौहान से नहीं की होगी और न ही अंग्रेजों का नाम सुन के सवतंत्रता सेनानियों का लहू इस कदर खौलता होगा जिस तरह माया की धमनियों में बहता लहू प्रलय मचाने पर उतारू था॥ बस गुस्से के मारे तांडव करना बाकि रह गया था॥
जैसे तैसे कर मैंने मन ही मन राम का नाम लेते हुए वो इंटरव्यू पुरा किया॥ और माया से चलने की इजाज़त मांगी॥ तब शायद मैडम को ख्याल आया कि इस इंटरव्यू के पब्लिश होने की तारीख जानने के लिए उन्हें मेरा नाम और टेलीफोन नंबर लिख्वाके रख लेना चाहिए॥ इसलिए मुझसे मेरा नाम एक बार फिर पूछा गया॥ पहली बार परिचय देते वक्त मैंने अपने नाम के साथ उपनाम यानि सर नेम का इस्तेमाल नही किया था वरना ये इंटरव्यू इतना मज़ेदार न रहता॥ मगर इस बार मैंने माया के सामने उसके दिमाग के आँगन में घुस कर बम्ब ब्लास्ट किया और अपना नाम अपने सर नेम के साथ बताया॥ जिसे सुन कर माया सन्न रह गई॥ उसकी समझ में आ चुका था की मैं एक ब्राह्मन परिवार से हूँ॥ और ऊपर से एक पत्रकार जिसने अभी अभी मायावाणी से प्रसारित कार्यक्रम "ब्राहमणों की ऐसी तैसी" का सीधा प्रसारण न सिर्फ़ सुना बल्कि देखा भी ॥ पत्रकार और ब्राह्मन ये कॉम्बिनेशन माया को हज़म नही हो रहा था क्योंकि उसके चेहरे की हवाइयां चारों तरफ़ उड़ान भरती साफ़ दिखाई दे रही थी॥
अचानक माया ने अपनी माया दिखाई ख़ुद को संभाला और न चाहते हुए भी अपनी कुर्सी को कुछ पल के छोड़ वो खड़ी हुईं और मुझे गले से लगाते हुए बोली बड़ा अच्छा लगा आपसे महिला सशक्तिकरण के मुद्दे पर बात करके॥ महिला समाज को आप जैसी जुझारू युवाओं की इस समय ज़रूरत है तभी महिलाओं का उद्दार होगा॥ और आप बिना चाय नाश्ता किए कैसे जा सकती हैं?? चलिए आपके बहाने मैं भी कुछ खा लुंगी॥ वरना समाज सेवा में कहाँ वक्त मिलता है कुछ खाने-पिने का..
अब माया ने अपनी जुबान के टेप रिकार्डर का टेप बदला और उसमें ब्राह्मन प्रेम के भजन बजाने शुरू किए॥ अरे मुझे पैदा ज़रूर एक दलित माँ ने किया है मगर मैं पली बड़ी एक ब्राह्मन परिवार में थी ॥ दिल्ली के इन्द्रपुरी इलाके में जहाँ हम रहते थे वहां हमारे ज्यादातर पड़ोसी ब्राह्मन ही थे॥ और सबसे अच्छे पड़ोसी जो की एक उच्च दर्जे के ब्राह्मन थे उन्ही के यहाँ मेरा ज़यादा वक्त गुज़रता था॥ ज़िन्दगी में पढ़ लिख कर कुछ बनने के लिए उस ब्राह्मन परिवार ने ही मुझे प्रेरित किया॥ और ऐसे ही न जाने कितने और ब्राहमण प्रेम के किस्से मैंने माया की उसी ज़ुबान से सुने जो कुछ क्षण पहले ब्राहमणों को इस धरती का बोझ, कलंक जैसे शब्दों का हार पहना चुकी थी॥
जो भी हो माया ने अपने नाम को सार्थक कर दिखाया और मैं ये सोच रही थी की हमने अपने देश और समाज के कर्णधारों का नाम पहले लीडर रखा फ़िर राजनेता, अब सिर्फ़ नेता के नाम से उन्हें संबोधित करते हैं पर अब उन्हें एक नए नाम की ज़रूरत है "गिरगिट"॥
"गिरगिट" - एक शब्द में सब कुछ निचोड़ डाला!
जवाब देंहटाएंThanks Anil Ji for appreciation..
जवाब देंहटाएंसोशल इंजीनिअरिंग की चक्की ने कई महत्वपूर्ण मुद्दों को पीस डाला है वर्ना महिलाओं से जुड़े मुद्दों को भारत में जाति के चश्मे से न देखा जाता.पश्चिम के देशों में जेंडर इशु काफी हद तक फ्रिंज पर है पर यहाँ ये केन्द्रीय विषय होने की गुंजाइश रखता है.अफ़सोस कि जाति से जुड़े रेटरिक यहाँ सबसे आगे रहते है.रोचक और महत्वपूर्ण पोस्ट.
जवाब देंहटाएंtune usko jhapad kyon nahi rasid kiyaaaaaa?????
जवाब देंहटाएंI remember very clearly, when VP singh was the PM and in some corner there was a guy named Kanshi Ram whose name was featuring in the newspaper because he was anti Mahtama Gandhi and had used some derogatory words against him. It was the same getting scandalised theory, he was acting upon. He was a mastermind and then he nurtured Behanji to keep alive his politics of divide and rule. Thats what is going on and will go on.
जवाब देंहटाएंNice incidence. This is called - Just chill ......chill....... just chill.
जवाब देंहटाएंबहुत ही रोचक वाकया है। वैसे आज ही आपके ब्लॉग पर आया। तीन चार पोस्टें पढी है।
हर पोस्ट से लुत्फ ढरक रहा है।
"गिरगिट", "बहरूपिये" ज्यादातर नेता ऐसे ही हैं. बिलकुल सही कहा जिनके "मुंह में राम बगल में छुरी" होती है. सच्चाई उजागर करने के लिए आभार - हार्दिक शुभकामनाएं.
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