शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2009

राज ठाकरे जी, ये क्या हो रहा है??

जब से राज ठाकरे ने "मराठा वाद" का राग छेड़ा है तब से मैं मुंबई में चलने वाली हवाओं में एक अजीब सा परिवर्तन देख रही हूँ। चुनावों में राज ठाकरे की पार्टी का जिस तरह सुपडा साफ हुआ वो तो खैर होना ही था लेकिन उसके पहले ही टेलिविज़न जगत ने जैसे कसम खा ली थी की अब सारे उत्तर-पूर्वी भारत को मुंबई में ला बसाना है। नतीजतन एकाएक बिहारी, पंजाबी, गुजरती, हरयाणवी, बंगाली कहानियों का एक हजूम सा टेलीविजन धारावाहिकों में उमड़ पड़ा है। और इस नई परम्परा के चलते उत्तर-पूर्वी भाषाओँ में पकड़ रखने वाले कलाकारों को मानो दूरबीन के द्वारा ढूँढा जा रहा है। बच्चों से लेकर बूढों तक के किरदार के लिए कहीं बिहारी तो कहीं हरयाणवी, पंजाबी, गुजराती कलाकारों की चाँदी हो रही है। हर एक चनैल अपने-अपने प्राइम टाइम को और ज़यादा कमाऊ पूत बनाने के लिए उत्तर-पूर्वी भारत के परिदृश्य पर आधारित कहानियों, किरदारों और भाषा का तड़का लगाने में व्यस्त है। कलर्स टीवी पर जहाँ एक और "बालिका वधु" राजस्थान की सुनहरी रेत पर अपनी सफलता का इतिहास रच रही है वहीं "न आना इस देस लाडो" में सभी कलाकार हरयाणवी तेवरों से दर्शकों का मन मोह रहे हैं। एनडी टीवी पर "बंदिनी" ने गुजरात से अपना रिश्ता जोड़ लिया है तो ज़ी टीवी का बहु चर्चित धारावाहिक "छोटी बहु" में बनारस के घाट अपनी लोकप्रियता के परचम लहलहा रहे हैं। "अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजो" की बिटिया ने राज ठाकरे के कट्टर दुश्मन बिहार की चुनरी ओढ़ के दर्शकों के दिलों में अपनी जगह बना ली है। यानि कुल मिला के जो चमत्कार टेलिविज़न के इतिहास में आज तक नही हुआ वो इत्तेफाकन अब हो रहा है। जी हाँ ये सब महज़ एक इतेफाक ही है मगर दिलचस्प इतेफाक कि जैसे ही राज ठाकरे ने "मराठा वाद" कि भट्ठी सुलगा के अपने राजनितिक कैरिअर कि रोटियां सकने का बंदोबस्त किया वैसे ही टेलीविजन पर "अनेकता में भी एकता की मिसाल" भारतीय संस्कृति का देस राग गूंजने लगा। जिसका हर एक सुर इतना सधा हुआ है कि आने वाले कई वर्षों तक ऐसे-ऐसे एक सहस्त्र राज ठाकरे मिल कर भी नाखून को मांस से अलग नही कर सकेंगे। जिन छोटी छोटी रियासतों को जोड़ कर अखंड भारत की नीव रखने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल ने "आयरन मैन" यानि लोह पुरूष का खिताब जीता था उस अखंड भारत की नीव को हिलाना किसी राज ठाकरे जैसे कलयुगी "जयचंद" के बस कि बात नहीं। इसलिए हर एक नेता को अभी से ये सबक ले लेना चाहिए कि भारतीय लोकतंत्र का मखोल उड़ने के दिन अब लद गए हैं। जनता का दिल जितने की एक ही "मास्टर की" है और वो है निस्वार्थ समाज सेवा। तो जो जो "नेता गण" भारत भाग्य विधाता बनने का सपना पाल रहे हैं वो अभी से निस्वार्थ सेवा का रास्ता अपना लें तो अगले चुनाव में उनकी जीत का विश्वास मैं उनको दिलाती हूँ।
राज ठाकरे की पूर्व कारिस्तानियों से सम्बंधित एक और लेख पड़ने के लिए यहाँ दिए गए लिंक पर जायें:

http://kashmir-timemachine.blogspot.com/2009/01/w-hen-i-was-thinking-of-going-to-bed.html

4 टिप्‍पणियां:

  1. Wonderful article and a big slap to separatist people like Raj who are more dangerous to us than pakistan or Taliban.

    JAI HIND!!!

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  2. shri krishan ne shrimad bhagvat geeta main kaha hai "parivartan sansar ka niyam hai". aur samay aa gaya hai parivartan ka.. is sachchai ko jitni jaldi ye neta mandali samjh jaye to jute-chaplon ki bochhar se bach jayegi warna to juton ke bhut baton se nahi mante.
    good piece of thots. keep it up!!

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  3. नफरत का वातावरण तैयार करके कोई सूबा चलता है क्या? यह तो होना ही था। अच्छी प्रस्तुति।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  4. good lesson for Raj Thakrey and his followers. may be this is happening by sheer chance but the timing is so perfect and i hope in future no one shall even think about dividing india on the basis of religion, cast or status.good maza aaya!

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