गुरुवार, 19 मार्च 2009

बहु पिट चुकी अब बेटी की बारी..


देखिये सभी महिला मंडल और महिला अधिकार समितियों से मेरी गुजारिश है कि सिर्फ़ टाइट्ल पढके मेरे खिलाफ नारे लगाने से पहले पूरी बात जान लें.. ये वो पिटाई नहीं जहाँ लाठी, थप्पड़ या जूतों से पिटाई की जाए ये टीआरपी के जूतों से होने वाली पिटाई है॥ जहाँ न तो किसी के आंसू निकले हैं ना ही खून.. पर प्रोड्यूसर और चैनल को घटा होने पे दोनों खून के आंसू ज़रूर रोते हैं..

चलो अब मुद्दे की बात पे आते हैं की ये टीआरपी की पिटाई आखिर कौन सी पिटाई है॥ तो सुनिए क्योंकि सास भी कभी बहु थी, छोटी बहु, बड़ी बहु, मंझली बहु, तीन बहुरानियाँ वगैहरा-वगैहरा यानि इधर-उधर और दुनिया भर की बहुओं की जामात ने पुरे आठ तक साल हम लोगों के ड्राइंग रूम पे हुकूमत की॥ और वो भी एक २०" के डिब्बे के बलबूते पे॥ २०" का डिब्बा अरे वही इडिअट बक्सा, अपना टेलिविज़न॥
आखिरकार ये सरकार कभी न कभी तो गिरनी ही थी न॥ तो जी देश ने अपनी "एकता" दिखाई और बहुओं की टीआरपी गिरा के कर दी उनकी जम के पिटाई॥ पर हम सीरियल बनाने वाले भी कहाँ चुप बैठने वाले हैं॥ बस एक हुकूमत का तख्ता जनता ने पलटा तो हमने दूसरी को ला बिठाया लोगों के घरों में॥ अब ये दूसरी कौन ? नही जी हम यहाँ दूसरी बीवी या बहु की बात नही कर रहे ये दूसरी हैं टेलिविज़न पर नई सरकार बनानेवाली बेटियाँ.. ना आना इस देस लाडो, मेरे घर आई एक नन्ही परी, लाडली, अगले जन्म मोहे बिटिया ही कीजो.. इस सरकार के प्रमुख सदस्य हैं॥ और सदस्य भीआते रहेंगे॥ और कुछ सालों तक इस सरकार की हुकूमत सलामत रहेगी॥ अब सरकारें तो बदल गई पर परदे के पीछे की हकीकत वही की वही है..आज भी मेल कलाकारों से ज़्यादा फिमेल कलाकारोंको देसी घी में चुपडी और तड़का मार रोज़ी-रोटी मिल रही है.. क्योंकि बहु का किरदार हो या बेटी का निभाना तो किसी फेमेल कलाकार को ही पड़ेगा न.. यानि संसद में महिलाओं को 33% आरक्षण मिले या न मिले पर टेलिविज़न की सरकार की बागडोर महिलों के ही हाथ रहेगी.. वो तो गनीमत है के नेताओं का धयान इस तरफ़ नही गया वरना मायावती कीकोशिश होती के दलित कलाकारों को आरक्षण दो, राज ठाकरे मराठी कलाकारों को काम देने वाले निर्माताओं को ही फ़िल्म सिटी में शूटिंग करने देते॥ और अगर सभी राजनितिक दलों में किसी बात पे "एकता" होती तो वो ये के महिला कलाकारों की सीटें कम हो .. अगर ऐसा होता तो इन बहु-बेटियों का क्या होता ?? फिर शायद कुछ इस तरह के सीरियल दिखाई देते क्योंकि ससुर भी कभी दामाद था, बाल-दामाद, फिर आना इस देस लाडेसर, अगले जन्म मोहे छोरा ही कीजो॥
जो भी हो टीआरपी के जूतों से पिटाई तो इनकी भी होती.. वैसे ही जैसे बहुओं की हुई और देखना है की बेटियोंकी पिटाई कितने साल बाद होगी और फिर उसके बाद क्या?? फिर से बहुए या अगली बार कुछ और?? ज़रा सोचिये ..

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें