
"कश्मीर वचार" का ये नया पोस्ट कश्मीर घाटी के कल और आज के विश्लेषण पर ही आधारित है।
http://kashmir-timemachine.blogspot.com/2010/07/omar-honest-politician.html
Life is a Journey.From Kashmir to Kanyakumari,beginning till the end of another story, it is one long curve, full of Turning Points.. You never know which place, person, time, season or circumstance will affect LIFE, HEART, MIND or SOUL.. This blog is all about those Turning Points..
“हॉउस फुल एंड बदमाश कम्पनी इज ए हिट” और जहाँ तक हम सभी जानते हैं इन फिल्मों के हिट होने में इनके हीरो -हिरोइन के इश्क की झूठी अफवाहों का कोई योगदान नहीं । दोनों ही फिल्मों में ज़रूरत के हिसाब से सटीक और कसावदार स्टोरी, डायलाग, निर्देशन और अभिनय के कमाल ने दर्शकों के दिल में कुछ ऐसा धमाल मचाया कि दोनों फिल्मों ने इस साल की सुपर-डुपर हिट फिल्मों की श्रेणी में अपना स्थान सुनिश्चित कर लिया।क्या इन फिल्मों की सफलता “लव स्टोरी २०५०”, “किस्मत कनेक्शन” जैसी फ्लॉप फिल्मों के निर्माता-निर्देशकों को सफल फिल्मों के रास्ते का सही दिशा ज्ञान दे पायेगी?? कुछ फ़िल्मकार फिल्म की रिलीज़ से पहले हीरो-हिरोइन के इश्क़ के चर्चों को hi फिल्म की सफलता मज़बूत करनेवाला एक कलपुर्जा मानते हैं.. लेकिन ये तो संभव है कि हीरो हिरोएँ के इश्क के चर्चे किसी अख़बार या पत्रिका कि साल्स बाधा दे पर करोड़ों कि लगत से बनानेवाली फिल्मों को दर्शक यूँ ही सुपर हित होता
आम जनता की जिंदगी में कोई रस नहीं है। इसीलिए वह इस तरह की अफवाहों में रुचि लेती है।
यह बीमारी हमारे यहाँ विदेशों से आई है। वहाँ भी जब कोई फिल्म बन रही होती है, तभी से प्रचार विभाग के कल्पनाकार अफवाहें उड़ाने लगते हैं। इन अफवाहों का पैटर्न यही होता है कि फलाँ हीरो, फलाँ हीरोइन के साथ अमुक जगह पर देखा गया और ज़रूर इनके बीच कुछ पक रहा है। इन अफवाहों का आधार होता है कि अमुक फिल्म में दोनों काम कर रहे हैं और वहीं सेट पर दोनों की दोस्ती हुई। आप गौर करेंगे तो पाएँगे कि फिल्म पत्रिकाओं के मुताबिक जब भी कोई हीरो, किसी हीरोइन के साथ कोई फिल्म कर रहा था, उस दौरान दोनों के बीच इश्क भी पनप रहा था। हरमन बावेजा और प्रियंका चोपड़ा को लेकर भी यही कहा गया था। shahid kapoor और प्रियंका को लेकर भी यही कहा गया। सो, प्रचार के लिए इससे सस्ता कुछ हो ही नहीं सकता। अगर किसी पत्रिका या अखबार में फिल्म का विज्ञापन देना हो तो सेंटीमीटर के हिसाब से जगह खरीदनी पड़ती है, मगर इस तरह मुफ्त में ही करोड़ों का प्रचार हो जाता है। इन अफवाहों को फैलाने के लिए एजेंसियाँ हैं और ये एजेंसियाँ उन पत्रकारों को उपकृत करती हैं, जो ऐसी अफवाहें छापते हैं या उन्हें छपवाने की व्यवस्था करते हैं।असल बात तो यह है कि "काइट्स" के सेट पर प्यार नहीं, झगड़ा चलता रहता है। वह भी निर्माता व निर्देशक के बीच। हमेशा सेट पर रहने वाले फिल्म के निर्माता राकेश रोशन फिल्म के निर्देशक अनुराग बसु को सुझाव और सलाहें देते रहते हैं। पिछले दिनों फिल्म से दो गीत भी निकाल दिए। दोनों के बीच खटपट चलती ही रहती है। बसु अपने मन का काम करने के लिए आज़ादी चाहते हैं, जो राकेश रोशन देते नहीं हैं। बहरहाल, फिल्म के पोस्टर जारी हो गए हैं और पोस्टर बेहद आकर्षक हैं। देखना है "काइट" आसमान देखती है या उड़ते ही कटकर ज़मीन पर आ गिरती है।
२६/११ का काला अतीत इतिहास के पन्नो में दर्ज हो चुका है। ६/०४ का दिन उसी काले अतीत को रचने वाले के भविष्य का फैसला करने केलिए इतिहास में सुनहरे अक्षरों से लिखा जा चुका है। कसाब जोकि सरहद पार से भेजा गया पार्सल था उसकी मौत तो निश्चित हो चुकी है लेकिन सरहद के भीतर बैठे उन नकाबपोशों का क्या जो इस देश की नीव को दीमक बनके खोखला कर रहे हैं?? उनकेलिए न तो कोई केस दर्ज हुआ, न ही हमें उनके गुनाहों की खबर है इसलिए उनकी सजा मुक़र्रर होने का इंतज़ार हमें हो ये सवाल ही पैदा नहीं होता।
२६/११ के दौरान शहीद हुए हमारे जांबाज़ सिपाहियों की शहादत केलिए क्या सिर्फ कसाब ही ज़िम्मेदार है?? उस काली रात के अँधेरे में और भी बहुत कुछ ऐसा घटित हुआ जिससे हम सब बेखबर हैं?? इस ब्लॉग लिंक को पढ़ कर शायद काफी सवालों के जवाब हमारे सामने खुद-बी-खुद बेपर्दा हो जायेंगे।
http://kashmir-timemachine.blogspot.com/2010/05/kasab-and-mumbai-police.html
अंग्रेजी में एक कहावत है “चैज इज़ द ओनली कांस्टेंट यानि "परिवर्तन संसार का नियम है" और ये बात बदलते भारत पर इस वक़्त बिलकुल सटीक बैठती है । राजनीती में बाबा रामदेव जी का पदार्पण, स्वास्थ्य जगत में अचानक होमियोपथी, आयुर्वेदि चिकित्सा पद्दति को बढावा देने की सरकारी मुहीम, और फिल्मों में तो ये परिवर्तन इतनी तेज़ी से आ रहा है कि एक से दुसरे शुक्रवार के बीच रिलीज़ होने वाली फिल्मे मानो सदियों का फासला तय कर लेती हैं।
जैसे पकी पकाई फ़िल्मी जोड़ियों को लेकर फिल्में बनाने की जगह नयी जोड़ियों को फिट किया जा रहा है अतिथि तुम कब जाओगे में अजय देवगन और कोंकना सेन शर्मा या इश्किया में विद्या बालन और अरशद वारसी की जोड़ी इस परिक्षण का जीता जगता उदाहरण है॥ मनोरंजन के नाम पर फूहड़ता और घिसी पिटी कहानियो का दौर भी अब लगभग अपनी आखिरी सांसे ले रहा है। यही वजह है कि कॉमेडी देखने वाले दर्शकों को भी जबरन ठूँसी हुई कॉमेडी की जगह एक स्तरीय कॉमेडी देखने को मिल रही है। हालाँकि अभी भी अधिकतर फिल्म निर्माता निर्देशक रंगीनियत के चश्मे से चीजों को देखने के लालच को तिलांजल इनही दे पाए हैं लेकिन निर्माता-निर्देशको कि एक नयी पौध सिग्नल पर रहने वाले उन भिखमंगों या फिर दो पहिये कि गाड़ी से चार पहिये कि गाड़ी तक ज़िन्दगी को धकेलने कि कोशिश करनेवाली मध्यम वर्गीय परिवार की कहानी (आने वाली फिल्म दो दुनी चार) को भी बेख़ौफ़ परोसने कि हिम्मत कर रहे हैं । प्यार की कसमें खा-खाकर अपनी जान तक देने वाले आशिकों की फिल्मों से हटके वर्तमान फिल्में हसीन वादों और सपनों से भी आगे जमीनी हकीकत से रू-ब-रू कराती हैं, जहाँ जिंदगी इतनी आसान नहीं होती । लेकिन इस बदलती सोच का सारा श्रेय सिर्फ निर्माता या निर्देशको को देना उचित नहीं होगा । इस बदलते परिवेष की ज़िम्मेदारी काफी हद तक आज के युवा वर्ग को भी जाती है । पहले फिल्मों में जहाँ आलीशान बंगले और बड़ी बड़ी गाड़ियाँ हुआ करती थी वही आज कि फिल्में तंग गलियों में सिसकती ज़िन्दगी कि सच्चाई से दर्शकों को रु-बी-रु करवा रही हैं। आज का दर्शक मायाजाल से निकल कर तंग गलियों के सफर का भी खुले दिल से स्वागत करता है। तारे ज़मी पर, ३ इडिअट्स , कुर्बान, थैन्क्यू माँ जैसी फिल्मो का आगमन बदलती सोच और समाज का सन्देश देती हैं। आज कि फिल्मो और निर्देशको में सामाजिक सच दिखाने का माद्दा है। ये बदलती सोच ही बदलते वक़्त और भारत की ज़रूरत है।
लेकिन सिर्फ फिल्में ही नहीं बल्कि शिक्षा, व्यवसाय और तकनीक को भी बदलते दौर के साथ खुद को तेज़ी से बदलना होगा तभी भारत को विश्व गुरु कहलाने का गौरव हासिल होगा।
तो लेडीज़ फर्स्ट के नियम कि अवहेलना न करते हुए शुरुआत करते हैं ५०, ६० और ७० के दशक में हिन्दी फ़िल्म के दर्शकों को अपना नाम "चिन चिन चुंग" बता कर सबका मन मोहने वाली हेलन रिचर्ड्सन से॥ जिन्हें हम सब सिर्फ़ हेलन के
नाम से ही जानते हैं॥ यूँ तो हिन्दी फिल्मों में हेलन का नाम बतोर खलनायिका, सह-अभिनेत्री और मुख्य अभिनेत्री यानि हर रूप में हम देखते आए हैं मगर हेलन को आज भी हिन्दी फिल्मों की सबसे ज़्यादा मशहूर आइटम ग
हेलन के बाद र्ल के रूप में ही याद किया जाता है॥ क्योंकि करीब ३०० फिल्मों में अपनी बेहतरीन अदाकारी का जादू चलने वाली हेलन ने ६५ से भी ज़्यादा फिल्मों में सिर्फ़ और सिर्फ़ आइटम सोंग के लिए ही अपनी मुह दिखाई की थी॥
मुझे याद आ रही है मुंबई पुलिस की॥ ६० व् ७० के दशक में अगर किसी हिन्दी फ़िल्म में पुलिस ऑफिसर का किरदार निभाने कि बात आती तो उसके लिए स्क्रीन टेस्ट या या ज़्यादा सोच-विचार करने कि शायद ही नोबत आती होगी क्योंकि इस भूमिका को बार -बार निभाते हुए जगदीश राज इस कदर टाइप हो चुके थे कि शायद उन्होंने भी किसी फ़िल्म का ऑफर आने पर ये पूछना छोड़ दिया होगा की फ़िल्म में उनका किरदार क्या है?? यही वजह है कि करीब २३६ फिल्मों में से १४४ बार जगदीश राज सिर्फ़ पुलिस इंसपेक्टर कि भूमिका में ही दिखाई दिए॥ जोकि अपने आप में एक विश्व रिकॉर्ड है॥
और अब बात करते हैं पंजाब दे पुत्तर रुस्तम-ऐ-हिंद दारा सिंह की॥ दारा सिंह जिनका नाम सुनते ही फ़िल्म और टेलीविजन पर उनके द्वारा साकार पवन पुत्र हनुमान का किरदार अपनेआप ज़हन में घूमने है॥ और शायद ये कहना ग़लत नही होगा कि दारा सिंह का नाम अब फिल्मी हनुमान जी के किरदार का प्रयाय्वाची बन चुका है॥ हालाँकि उनकी इस पदवी पर उनके सुपुत्र विदु ने कुछ वर्षों पहले अपनी
दावेदारी साबित करने कि कोशिश कि थी मगर पिता की लोकप्रियता के सामने बेटे की छवि का कद्द बोना साबित हुआ॥ दारा सिंह ने अबतक तक़रीबन १२० से भी ज़्यादा फिल्मों में अपनी अदाकारी का योगदान दिया है पर उनका सबसे बड़ा योगदान रहा धार्मिक हिन्दी फिल्मों में निभाई उनकी अलग-अलग भूमिकाएं॥ गौरतलब है कि अपने अब तक के अभिनय सफर में वह ५ बार बजरंगबली, 4 बार भीम, ३ बार भगवन शिव और एक बार भीम पुत्र घटोत्कच का किरदार निभा चुके हैं॥ मगर आज भी बजरंगबली के फिल्मी अवतार का नाम आते ही दारा सिंह ही हनुमान रूप दिखाई देने लगते हैं॥
ये जीतनी भी खाली पोस्ट के बारे में मैंने आपको जानकारी दी है इनके शहंशाहों ने वर्षों पहले ही अपने सिंघासन को खाली कर नई पीढी को उस पर विराजने का निमंत्रण दे दिया॥ मगर आज इतने सालों के बाद भी उस सिंघासन पर बैठना तो दूर कोई उस पायदान की पहली सीडी पर भी पाँव नही रख सका है॥ जो भी हो मुझे नही लगता इन खाली पड़े सिंघासनों को कभी कोई वारिस मिलेगा॥