
बात की शुरुआत करते हैं पहली बार ऑस्कर पुरस्कार समिति को एक हिन्दी गीत गुनगुनाने और समझने पार मजबूर करने वाले सम्पूरण सिंह कालरा यानी हम सब के अपने "गुलज़ार साहब" से। करीब तीन साल पहले उम्र की ७०वीं देहलीज़ पार कर चुके गुलज़ार साहब जैसे अब आदी हो चुके हैं अपने गीतों से हर साल एक नया इतिहास रचने की। कहानी, संवाद लेखन से लेकर गीत रचना, फ़िल्म निर्माण-निर्देशन, मानों हर जगह गुलज़ार साहब अपना नाम देखने आदत पड़ गई है। पुरस्कारों के मामले में भी इनकी अभिलाशों के बाल अभी भी पके नहीं हैं। गौरतलब है की अपनी कलम को अपनी पहचान बनाने से पहले गुलज़ार साहब एक कार गैरेज में काम करते थे। इनकी कभी न ख़तम होने वाली पारी और कितनी बार दुनिया को इनकी जय बुलाने पर मजबूर करेगी ये कहना मुश्किल है।
आगे बात करते हैं मंगेशकर बहनों की। सत्तर बसंत इन्होने बस यूँ हीं गाते-गुनगुनाते, हम सब का दिल बहलाते कब और कैसे बिता दिए ये किसी को भी पता नहीं चला। विविध भाषाओं वाले देश भारत की किस-किस भाषा के गीतों को इन्होने अपनी जादुई आवाज़ से सजाया है ये कहने से बेहतर होगा ये तलाशा जाए कि कौन सी भाषा में इन् दोनों बहनों संगीत कि साधना नहीं की ? फिल्मफेर, राष्ट्रिय पुरस्कार, दादा साहब फाल्के पुरस्कार इनके लिए मानों हर साल उगने वाली फसलों की तरह हैं। पुरस्कारों कि भीड़ का सामना करते-करते ये बहने भले ही थक चुकी हों लेकिन इनके चाहनेवाले इनकी आवाज़ के जादू से अभी थके नहीं हैं।
ज़िन्दगी में ७० दशकों के बाद एक नई जवानी की बुनियाद रखने वालों में फ़िल्म जगत ही अग्रणीय है ऐसा नहीं है। चौदवी और पन्द्रहवीं लोक सभा में कांग्रेस के सर पर जीत का सेहरा बांधने वाले और पूरे देश को "सिंग इस किंग" का नारा देने वाले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की उपलब्धियों की सूची इनकी उम्र में दर्ज सालों से भी बड़ी हो चुकी है। और वहीँ ७० जमा १० अस्सी के आंकडे को भी छू चुके श्री लाल कृष्ण आडवानी ने तो अपनी जोश और नेतृत्व से अपने से आधी उम्र के राहुल गाँधी तक को अपनी लोकप्रियता और सूझ-बुझ के प्रति आशंकित कर दिया था। देव आनंद, मकबूल फ़िदा हुसैन, जोहरा सहगल, भीम सेन जोशी, दारा सिंह, यश चोपडा ये वो नाम हैं जो आज की युवा पीढी को ये सोचने पर मजबूर करते देते हैं कि क्या इनसे दुगने जोश और सकारात्मक परिस्थितियों के बावजूद वो लोग इनके हौसलों को कहीं रत्ती भर भी छू सके हैं। आखिर इन हरफनमौला, ७०+नौजवानों की ढलती उम्र में चढ़ते जादू का राज़ जानने की क्या कभी हमारे युवा कोशिश करेंगे??